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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2796
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान : लोक प्रशासन

अध्याय - 15

भारतीय प्रशासन का विकास : प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक/समकालीन

(Evolution of Indian Administration: Ancient Medival and Modern/Contemporary)

प्रश्न- भारतीय प्रशासन के विकास का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।

उत्तर -

जिस समय विश्व बर्बर, असभ्य तथा जंगली युग में भटक रहा था उस समय भी भारत का ज्ञान अपने चरम स्तर पर था। भारत (हिन्दुस्तान) में प्रशासनिक व्यवस्था कायम थी। ऋग्वेदीय काल में राजनीतिक आधार पितृसत्तात्मक परिवार था। अधिक बड़ी इकाइयाँ ग्राम, विश तथा जन कहलाती थीं। प्रत्येक जन का कोई न कोई राजा था। प्राचीनकाल में जनजातियों में जो प्रशासन प्रचलित था वह राज तन्त्रात्मक था। राजा का मुख्य कर्त्तव्य जनता की रक्षा करना होता था। राजा की सहायता के लिए ऋग्वेद में तीन पदाधिकारियों का वर्णन मिलता है।

(i) सेनानी - जो सेना का नायक होता था.
(ii) ग्रामीण - जो कि ग्राम का पदाधिकारी होता था।
(iii) पुरोहित -जो कि ब्राह्मण होता था तथा राजा का प्रमुख सलाहकार भी होता था।

भारतीय प्रशासन के विकास को समय के अनुसार विभिन्न कालों में विभाजित करके समझा जा सकता है।

(1) उत्तर वैदिक काल में प्रशासन - उत्तर वैदिककाल में अथर्ववेद संहिता, सामवेद संहिता तथा यजुर्वेद संहिता की रचनाएँ हुई थीं। इसी काल में चारों वेदों ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा यजुर्वेद के उपनिषदों की रचनाएँ हुई थीं। इसी साहित्य के आधार पर ही इस युग की राजनीतिक व्यवस्था तथा प्रशासनिक व्यवस्था की स्थिति को समझा जा सकता है। उत्तर वैदिककाल में बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना होने लगी थी। इससे राजा के अधिकारों में असीमित शक्ति की वृद्धि होने लगी। उसे ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाने लगा। राजा का मुख्य कार्य प्रजा की रक्षा करना था। राजा का अपना एक सलाहकार मण्डल होता था जो उसे विभिन्न राजनीतिक एवं प्रशासनिक मामलों में सलाह देता था। राजा के ऊपर पुरोहित मन्त्री का नियन्त्रण भी रहता था जिससे राजा स्वेच्छाचारी नहीं होने पाता था।

(2) मौर्यकालीन प्रशासन - मौर्यकाल का महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य वह प्रथम सम्राट था जिसने सम्पूर्ण भारत के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। इसलिए यह कहा जाता है कि देश की एकता एवं अखण्डता में एक सराहनीय एवं महत्वपूर्ण प्रयास चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही सर्वप्रथम किया है जिसे हम सचमुच भारत का सम्राट कह सकते हैं और एक इतिहासकाल के लिए मौर्यवंश का प्रादुर्भाव अन्धकार से प्रकाश के मार्ग की ओर निर्देश करता है। मौर्यकालीन प्रशासन व्यवस्था के अन्तर्गत केन्द्रीय शासन का प्रधान राजा होता था तथा सम्पूर्ण शासन व्यवस्था उसी के अधीन हुआ करती थी। वह न्याय, कानून तथा सेना का प्रधान होता था। उसकी सलाह तथा मन्त्रणा के लिए मन्त्रिपरिषद होती थी। वह आवश्यक बातों की मन्त्रणा युवराज, प्रमुख मन्त्री, पुरोहित, सेनापति तथा कोषाध्यक्ष से करता था। किसी विषय पर विवाद होने पर निर्णय बहुमत के आधार पर होता था। किन्तु इसके बावजूद राजा अपनी इच्छा से भी निर्णय करने का अधिकार रखता था।

साम्राज्य शासन की सुविधा के लिए अनेक प्रान्तों में विभाजित था। इन प्रान्तों का शासन राजा के द्वारा नियुक्त व्यक्ति के द्वारा किया जाता था। शासन को चुस्त एवं दुरुस्त करने के लिए राजा के द्वारा निरीक्षण किए जाते थे। कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्यकालीन शासन व्यवस्था के सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है।

(3) गुप्तकालीन प्रशासन - गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत राजतन्त्र तथा लोकतन्त्र के शासन का प्रचलन था। अधिकांशतः पैतृक राजतन्त्र का प्रचलन था किन्तु राजा द्वारा निरंकुशतापूर्ण शासन नहीं किया जाता था। वह प्रजा का पालक होता था। राजा के अधिकारों में सैनिक राजनीतिक, शासकीय तथा न्यायिक सभी कार्य आते थे जिनका प्रयोग राजा मन्त्रिमण्डल की मन्त्रणा एवं सहायता से करता था ! राजा शासन का केन्द्र बिन्दु होता था। शासन की शक्ति राजा में ही केन्द्रित होती थी। मन्त्रियों तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति राजा स्वयं ही करता था।

राज्य की आन्तरिक सुरक्षा और शक्ति के लिए रक्षा विभाग का संगठन किया जाता था। इस विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी दण्ड पदाधिकारी तथा उसके अधीन कर्मचारी तथा रक्षक होते थे। इस काल के राजाओं की प्रशासनिक व्यवस्था का प्रमुख आधार लोक कल्याण हुआ करता था।

गुप्त राजाओं ने प्रान्तीय तथा स्थानीय शासन की पद्धति चलायी। राज्य कई भुक्तियों अर्थात् प्रान्तों में विभाजित होते थे तथा प्रत्येक भुक्ति एक-एक उपरिक के प्रभार में रहती थी। भुक्तियाँ कई विषयों अर्थात् जिलों मंभ विभाजित होती थीं। प्रत्येक विषय (जिले) का प्रभारी विषयपति होता था। नगर के प्रशासन में व्यवसायियों के संगठनों की महत्वपूर्ण भागेदारी होती थी।

(4) मुगलकाल में प्रशासन - मुगलकाल में अत्यन्त केद्रीकृत नौकरशाही शासन व्यवस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ। केन्द्रीय शासन में मुगल बादशाह सर्वोपरि होता था अर्थात् शासन की धुरी मुगल सम्राट ही हुआ करते थे और राज्य के सारे मामले राजा के इर्द-गिर्द घूमा करते थे। फिर भी अत्यन्त केन्द्रीकृत मुगल शासन की विविध गतिविधियों का अकेले संचालन करना सम्राट के लिए सम्भव न था। सरकार का कार्य सुचारू रूप से संचालित करने के लिए मन्त्रिपरिषद होती थी। मुगल बादशाह के बजीरों की विशेष भूमिका होती थी जिनकी संख्या निश्चित नहीं होती थी परन्तु इनकी संख्या लगभग पाँच या छः की होती थी जिनमें बजीर (प्रमुख सलाहकार), दीवान (सलाहकार), मुख्य सदर, मीरबख्शी (सैनिक कार्य देखने वाला). काजी (न्याय का प्रमुख) आदि होते थे। मुगलकालीन शासन केन्द्रीयकृत तथा निरंकुश हुआ करता था। इस शासनकाल में विभागों का बंटवारा किया जाता था। जिससे सम्पूर्ण कार्य ठीक ढंग से संचालित हो सके। इस काल के शासन व्यवस्था की मन्त्रिमण्डलीय शासन व्यवस्था का प्रारम्भिक स्वरूप कहा जा सकता है क्योंकि व्यवस्थित शासनतन्त्र के संचालन की उपयुक्त व्यवस्था शुरू हुई थी। भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के विकास में इस काल की शासन प्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

अंग्रेजों के शासनकाल में प्रशासन - अंग्रेजों ने भारतीय प्रशासन के आधुनिक स्वरूप का सूत्रपात किया। अंग्रेजों ने उस शासन पद्धति को भारत में अपनाया जो उनके अपने स्वयं के देश में प्रचलित थी। भारत के लोगों को प्रशासनिक मशीनरी के लिए शिक्षित किया गया और उनके द्वारा प्रशासन का संचालन शुरू किया गया। परन्तु भारत में मुगलकाल के अवधान के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन शुरू हुआ जो निरंकुश शासनप था। कम्पनी की निरंकुशता की गूंज ब्रिटेन तक पहुँचती रहती थी। जिससे ऊब कर ब्रिटिश सरकार द्वारा 1773 में रेग्यूलेटिंग एक्ट पास किया गया जिसके द्वारा एक केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ।

ब्रिटिश सरकार द्वारा समय-समय पर पारित कानूनों के बावजूद कम्पनी की शासन व्यवस्था में कोई सुधार सम्भव नहीं हुआ। भारत की जनता में व्याप्त आक्रोश ने क्रान्ति का रास्ता अपनाया जिसे 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा जाता है। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त हुआ और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था का भारत में सूत्रपात हुआ। इसे प्रशासनिक व्यवस्था के विकास की दृष्टि से एक नवीन युग का सूत्रपात कहा जा सकता है क्योंकि ब्रिटेन की सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए कई अधिनियम पारित किए गए।

ब्रिटिश शासन का सूत्रपात 1858 के भारत सरकार अधिनियम से होता है। भारत परिषद अधिनियम, 1892 और भारत परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। भारत सरकार अधिनियम, 1919 के स्वशासन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस अधिनियम द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था जनहित के कार्यों की तरफ एक कदम कही जा सकती है। भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना प्रशासनिक उत्तरदायित्व और प्रशासन का भारतीयकरण का शुभ आरम्भ हुआ। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अखिल भारतीय सेवाओं का प्रारम्भ किया गया। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के द्वारा केन्द्र में द्वैध शासन और प्रान्तों में स्वायत्त सरकारों की स्थापना की गई। इस व्यवस्था ने अर्ध संघीय शासन व्यवस्था का सूत्रपात किया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 'लोक प्रशासन' के अर्थ और परिभाषाओं की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- लोक प्रशासन की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- लोकतांत्रिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्रशासन' शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से किन प्रमुख अर्थों में किया जाता है?
  6. प्रश्न- "लोक प्रशासन एक नीति विज्ञान है" यह किन आधारों पर कहा जा सकता है?
  7. प्रश्न- लोक प्रशासन का महत्व बताइए।
  8. प्रश्न- प्रशासन के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र का 'पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण' की व्यख्या कीजिये।
  10. प्रश्न- लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के क्या कारण हैं?
  11. प्रश्न- एक अच्छे प्रशासन के गुण बताइए।
  12. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की चुनौतियाँ बताइये।
  13. प्रश्न- 'लोक प्रशासन में सैद्धान्तीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति', टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- कार्मिक प्रशासन के मूल तत्व क्या हैं?
  15. प्रश्न- राजनीतिज्ञ एवं प्रशासक के मध्य अन्तर लिखिए।
  16. प्रश्न- शासन एवम् प्रशासन में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- अनुशासन से क्या तात्पर्य है? लोक प्रशासन में अनुशासन के महत्व को दर्शाइए।
  18. प्रश्न- भारत में लोक सेवकों के आचरण को अनुशासित बनाने के लिए किए गए प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- लोक सेवकों को अनुशासन में बनाए रखने के लिए उन पर लगाए गए प्रतिबन्धों का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- किसी संगठन में अनुशासन के योगदान पर टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- प्रशासन में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं?
  22. प्रश्न- "अनुशासन में गिरावट लोक प्रशासन के लिए चुनौती" इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  23. प्रश्न- लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? निजी प्रशासन लोक प्रशासन से किस प्रकार भिन्न है?
  24. प्रश्न- "लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में अनेकों असमानताएँ होने के बावजूद कुछ ऐसे बिन्दू भी हैं जो उनके बीच समानताएँ प्रदर्शित करते हैं।' कथन का परीक्षण कीजिए।
  25. प्रश्न- निजी प्रशासन में लोक प्रशासन की अपेक्षा भ्रष्टाचार की सम्भावनाएँ कम है, कैसे?
  26. प्रश्न- निजी प्रशासन के नकारात्मक पक्षों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- लोक प्रशासन की तुलना में निजी प्रशासन में राजनीतिकरण की सम्भावनाएँ न्यूनतम हैं, कैसे?-
  28. प्रश्न- निजी प्रशासन के दो प्रमुख लाभ बताइए।
  29. प्रश्न- लोक प्रशासन के महत्व पर विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- आधुनिक राज्यों में लोक प्रशासन के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- संगठन का अर्थ स्पष्ट करते हुए, इसके आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- संगठन के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- संगठन के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए। औपचारिक संगठन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  35. प्रश्न- औपचारिक संगठन की विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- अनौपचारिक संगठन से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- संगठन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- संगठन के यान्त्रिक अथवा शास्त्रीय दृष्टिकोण (उपागम) को स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- पदसोपान प्रणाली के गुण व दोष बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  41. प्रश्न- संगठन के आदेश की एकता सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण बताते हुए इसकी समालोचनाओं पर भी प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- 'प्रत्यायोजन' से आप क्या समझते हैं? प्रत्यायोजन को परिभाषित करते हुए इसकी आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
  44. प्रश्न- प्रत्यायोजन के विभिन्न सिद्धान्तों एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- संगठन के सिद्धान्तों के विशेष सन्दर्भ में प्रशासन को लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक के योगदान की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र में एल्टन मेयो द्वारा प्रस्तुत मानव सम्बन्ध उपागम पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- हरबर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सम्बन्धी मॉडल की व्याख्या कीजिए।
  48. प्रश्न- हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धान्त का लोक प्रशासन में महत्व पर प्रकाश डालिए।
  49. प्रश्न- नौकरशाही का अर्थ बताइये और परिभाषाएँ दीजिए।
  50. प्रश्न- नौकरशाही की विशेषताएँ अथवा लक्षणों को बताइये।
  51. प्रश्न- निर्णयन का क्या अर्थ है? प्रशासन में निर्णयन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- हेनरी फेयाफल द्वारा उल्लिखित किये गये संगठन के सिद्धान्तों को बताइए।
  53. प्रश्न- 'गेंगप्लांक' पर टिप्पणी कीजिये।
  54. प्रश्न- हरबर्ट साइमन द्वारा 'प्रशासन की कहावत' किन्हें कहा गया है और क्यों?
  55. प्रश्न- ऐल्टन मेयो को मानव सम्बन्ध उपागम के प्रवर्तकों में शामिल किया जाता है, क्यों?
  56. प्रश्न- निर्णयन के अवसरों का वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- निर्णयन के लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- प्रतिबद्ध नौकरशाही की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण का आशय स्पष्ट कीजिए। सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- सूत्र या पंक्ति अभिकरण से क्या आशय है एवं सूत्र (लाइन) या पंक्ति अभिकरणों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- प्रशासन में स्टाफ अभिकरण के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- स्टाफ अभिकरणों के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- स्टाफ अभिकरण के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- सहायक अभिकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं स्टाफ अभिकरण से इनकी भिन्नता पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- मुख्य प्रशासक की प्रशासन में क्या स्थिति है? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- बजट से आप क्या समझते हैं? इसे परिभाषित कीजिए। भारत में बजट कैसे तैयार किया जाता है?
  67. प्रश्न- बजट किसे कहते है? एक स्वस्थ बजट के महत्वपूर्ण सिद्धान्त बताइए।
  68. प्रश्न- भारत में केन्द्रीय बजट का निर्माण किस प्रकार होता है?
  69. प्रश्न- वित्त विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के विशेषाधिकार को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- बजट का महत्व बताइए।
  72. प्रश्न- भारत में बजट के क्रियान्वयन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- बजट के कार्य बताइये।
  74. प्रश्न- बजट के प्रकार लिखिए।
  75. प्रश्न- वित्त आयोग के कार्य बताइए।
  76. प्रश्न- योजना आयोग का प्रशासनिक ढाँचा क्या है?
  77. प्रश्न- शून्य आधारित बजट का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? नवीन लोक प्रशासन के उदय के कारण बताते हुए इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि का वर्णन कीजिए तथा नवीन लोक प्रशासन एवं दार्शनिक पृष्ठभूमि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए इसके लक्षणों का परीक्षण कीजिए।
  81. प्रश्न- नवीन लोक प्रबन्ध के अभ्युदय कैसे हुआ? नवीन लोक प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएँ बताते हुए इसके अंतर्गत सरकार की भूमिका में आए बदलावों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन की भावी सम्भावनाओं को व्यक्त कीजिए।
  83. प्रश्न- नव लोक प्रशासन का उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  84. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख तत्व कौन से हैं?
  85. प्रश्न- 'नवीन लोक प्रबन्ध' दृष्टिकोण के हानिकारक पक्षों पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण के समर्थक क्या आलोचना करते हैं?
  87. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की हरबर्ट साइमन द्वारा प्रस्तुत आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- प्रशासकीय कानून का क्या अर्थ है? प्रशासकीय कानून के विकास के प्रमुख कारण बतलाइए।
  89. प्रश्न- प्रशासकीय अधिनिर्णय का क्या अर्थ है? इसके विकास के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
  90. प्रश्न- भारत में जन शिकायतों के निस्तारण हेतु ओम्बड्समैन की स्थापना हेतु किए गए प्रयासों की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण से क्या तात्पर्य है? कोई न्यायालय प्रशासन के कार्यों को किस प्रकार अवैध घोषित कर सकता है?
  92. प्रश्न- भारत में प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण के विभिन्न साधनों का परीक्षण कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में प्रशासकीय न्यायाधिकरणों को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
  94. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों की हानियाँ बताइए।
  96. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के आधुनिक उपागमों को बताइये तथा व्यवहारवादी उपागमन को सविस्तार समझाइये।
  97. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के व्यवस्था उपागम का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- लोक प्रशासन के संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के पारिस्थितिकी उपागम का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- सुशासन से आप का क्या आशय है? सुशासन की विशेषताएँ लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय क्षेत्र में सुशासन स्थापित करने की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- भारत में सुशासन की स्थापना हेतु किये गये प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- विकास प्रशासन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- विकास प्रशासन से आप क्या समझते हैं? विकास प्रशासन के विभिन्न सन्दर्भों का उल्लेख करें।
  105. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के उद्भव व विकास को समझाते हुए विकास की विभिन्न रणनीतियों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- विकास प्रशासन के विभिन्न तत्वों की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रकृति एवं साधन बताइए।
  108. प्रश्न- विकास प्रशासन के सामान्य अभिप्राय के सम्बन्ध में प्रमुख विवादों (भ्रमों) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  109. प्रश्न- विकासात्मक नीतियों को लागू करने में विकास प्रशासन कहाँ तक उपयोगी है?
  110. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  111. प्रश्न- विकास प्रशासन के 'स्थानिक आयाम' को समझाइए।
  112. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के विकास के दूसरे चरण में विकास सम्बन्धी कि मान्यताओं का उदय हुआ?
  113. प्रश्न- विकास प्रशासन के समय अभिमुखी आयाम पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं और उनके मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  116. प्रश्न- भारतीय प्रशासन के विकास का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- राजनीति क्या है? मानव सामाजिकता में राजनीतिक भूमिका लिखिए।
  118. प्रश्न- वर्तमान भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

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